हर सुबह

हर सुबह तुझसे मिलने की ख्वाइश जाग उठती है,
खिड़की पर बैठती हूँ तो तेरी मेरी चाय चूल्‍हे पर पकने लगती है,
वो तेरी मेरी यादें मेरी आँखों में दौड़ने लगती है
यूँ लगता है की तू अभी भी रज़ाई में लिपटा हुआ है,
और कुछ ही देर में उठ कर मुझे अपनी बाहों में लेगा
सुबह उठते ही ऐसा लगता है की मेरा घर इंसानो का घर है
ना तू हिंदू है ना मैं मुसलमान
ऐसा लगता है की मेरी घर की दीवारें प्यार की नीव पर खड़ी है

पर कुछ ही देर में मेरी आँख खुलती है,
और मेरा सपना टूट जाता,
देखती हूँ तुम तो मेरे साथ हो ही नही और मैं हिंदु या ईसाई या मुसलमान हूँ
मेरी पहचान मेरे धर्म से है

यूँ सोचती हूँ कि किस ईश्वर की इबादत करूँ
किसने मुझसे तुम्हे छीन लिया,
मेरे अल्लाह ने या तेरे भगवान ने
किसने हमें जुदा कर दिया

अब जाग गयी हूँ तो सोचती हूँ कि काश ये मेरा सपना सच होता
हमारा मज़हब सिर्फ़ और सिर्फ़ इश्क़ होता
बस प्यार ही प्यार होता,ऐसा एक संसार होता
काश एक घर होता जहाँ ईश्वर, अल्लाह ,ईसा एक साथ रहते
हम तुम भी फिर साथ रहते
ना कोई किसी से लड़ता ना झगड़ता
बस प्यार ही प्यार पलता

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